GITA SAAR | गीता सार : गीता का उपदेश महाभारत के युद्ध में अपने शिष्य अर्जुन को भगवान् श्रीकृष्ण ने दिए थे जिसे हम गीता सार या गीता उपदेश भी कहते हैं। श्रीमद्भगवद् गीता हिन्दुओं के पवित्रतम ग्रन्थों में से एक है। महाभारत के अनुसार कुरुक्षेत्र युद्ध मेंने गीता का सन्देश अर्जुन को सुनाया था। यह महाभारत के भीष्मपर्व के अन्तर्गत दिया गया एक उपनिषद् है। भगवत गीता में एकेश्वरवाद, कर्म योग, ज्ञानयोग, भक्ति योग की बहुत सुन्दर ढंग से चर्चा हुई है।
अध्याय संख्या | अध्याय का नाम | श्लोक संख्या |
अध्याय 1 | अर्जुनविषाद योग | 46 श्लोक |
अध्याय 2 | सांख्य योग | 72 श्लोक |
अध्याय 3 | कर्म योग | 43 श्लोक |
अध्याय 4 | ज्ञानकर्मसंन्यास योग | 42 श्लोक |
अध्याय 5 | कर्मसंन्यास योग | 29 श्लोक |
अध्याय 6 | आत्मसंयम योग | 47 श्लोक |
अध्याय 7 | ज्ञानविज्ञान योग | 30 श्लोक |
अध्याय 8 | अक्षरब्रह्म योग | 28 श्लोक |
अध्याय 9 | राजविद्या राजगुह्य योग | 34 श्लोक |
अध्याय 10 | विभूति योग | 42 श्लोक |
अध्याय 11 | विश्वरूपदर्शन योग | 55 श्लोक |
अध्याय 12 | भक्तियोग | 20 श्लोक |
अध्याय 13 | क्षेत्रक्षेत्रविभाग योग | 35 श्लोक |
अध्याय 14 | गुणत्रयविभाग योग | 27 श्लोक |
अध्याय 15 | पुरुषोत्तम योग | 20 श्लोक |
अध्याय 16 | दैवासुरसम्पद्विभाग योग | 24 श्लोक |
अध्याय 17 | श्रद्धात्रयविभाग योग | 28 श्लोक |
अध्याय 18 | मोक्षसंन्यासयोग | 78 श्लोक |
Table of Contents
गीता सार : जो हुआ वह अच्छा हुआ – GITA SAAR
जो हुआ, वह अच्छा हुआ,
जो हो रहा है, वह भी अच्छा ही हो रहा है,
और जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा।
तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो?
तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया?
तुमने क्या पैदा किया था,
जो नाश हो गया?
तुमने जो लिया यहीं से लिया,
जो दिया, यहीं पर दिया।
आज जो कुछ आप का है,पहले किसी
और का था और भविष्य में किसी
और का हो जाएगा
परिवर्तन ही संसार का नियम हे
अहिंसा ही परम् धर्म हे और उसके साथ सत्य, क्रोध न करना, त्याग, मन की शांति, निंदा न करना दया भाव, सुख के प्रति आकर्षित न होना , बिना कारण कोई कार्य न करना , तेज, क्षमा, धैर्य, शरीर की शुद्धता, धर्म का द्रोह न करना तथा अहंकार न करना इतने गुणों को सत्व गुणी संपत्ति या दैवी संपति कहा जाता हे |
भगवत गीता में कितने अध्याय हैं?
भगवद्गीता एक प्रमुख हिंदू धर्म ग्रंथ है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण द्वारा महाभारत के युद्ध क्षेत्र में अर्जुन को दिये गए उपदेशों का वर्णन है। इसमें कुल 18 अध्याय हैं जो महत्वपूर्ण ज्ञान, दर्शन और नीति को संकलित करते हैं। प्रत्येक अध्याय में अलग-अलग विषयों का वर्णन किया गया है। यहां भगवद्गीता के 18 अध्याय के नाम उपलब्ध हैं:
- अर्जुनविषादयोग (Arjuna Vishadayoga) – शोक और विषाद के विषय में
- सांख्ययोग (Sankhyayoga) – ज्ञान के विषय में
- कर्मयोग (Karmayoga) – कर्म के विषय में
- ज्ञानकर्मसंन्यासयोग (Jnana-Karma-Sannyasayoga) – ज्ञान, कर्म और संन्यास के विषय में
- कर्मसंन्यासयोग (Karma-Sannyasayoga) – कर्म और संन्यास के विषय में
- ध्यानयोग (Dhyanayoga) – ध्यान और साधना के विषय में
- ज्ञानविज्ञानयोग (Jnana-Vijnanayoga) – ज्ञान और विज्ञान के विषय में
- अक्षरब्रह्मयोग (Akshara-Brahmayoga) – अक्षर ब्रह्म के विषय में
- राजविद्याराजगुह्ययोग (Raja-Vidya-Raja-Guhya-Yoga) – अत्यन्त गोपनीय और अत्युच्च विद्या के विषय में
- विभूतियोग (Vibhootiyoga) – भगवान की विभूतियों के विषय में
- विश्वरूपदर्शनयोग (Vishwarupa-Darshanayoga) – भगवान के विश्वरूप के दर्शन के विषय में
- भक्तियोग (Bhaktiyoga) – भक्ति और प्रेम के विषय में
- क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग (Kshetra-Kshetrajna-Vibhagayoga) – शरीर और आत्मा के विषय में
- गुणत्रयविभागयोग (Gunatraya-Vibhagayoga) – त्रिगुणात्मिका प्रकृति के विषय में
- पुरुषोत्तमयोग (Purushottama-Yoga) – परम पुरुष भगवान के विषय में
- दैवासुरसम्पद्विभागयोग (Daivasura-Sampadvibhagayoga) – दैवी और आसुरी सम्पत्ति के विषय में
- श्रद्धात्रयविभागयोग (Shraddhatraya-Vibhagayoga) – श्रद्धा के तीन भेदों के विषय में
- मोक्षसंन्यासयोग (Moksha-Sannyasayoga) – मोक्ष और संन्यास के विषय में
ये अध्याय भगवद्गीता की महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और उसके विभिन्न आयामों को शामिल करते हैं, जो मानव जीवन, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के विषय में आदर्श और दर्शन सुचारू रूप से वर्णित करते हैं। यह उपदेश जीवन के विभिन्न पहलुओं में शक्तिशाली मार्गदर्शन प्रदान करते हैं और आध्यात्मिक और नैतिक विकास में मदद करते हैं।
गीता के उपदेश इन हिंदी – Bhagwad Gita Saar in Hindi
न जायते म्रियते वा कदाचिन्ना, यं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो, न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥
हिंदी अर्थ -: आत्मा किसी काल में भी न जन्मता है और न मरता है और न यह एक बार होकर फिर अभावरूप होने वाला है। आत्मा अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातन है, शरीर के नाश होने पर भी इसका नाश नहीं होता।
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः॥
हिंदी अर्थ -: आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते और न अग्नि इसे जला सकती है जल इसे गीला नहीं कर सकता और वायु इसे सुखा नहीं सकती।
यहां नीचे गीता के कुछ महत्वपूर्ण उपदेश हिंदी में दिए गए हैं:
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।” कर्म करो, फल की इच्छा नहीं: यहां भगवान कहते हैं कि हमारा कर्तव्य है कर्म करना, परन्तु फल की इच्छा नहीं रखनी चाहिए। हमें अपने कर्मों को निष्काम भाव से करना चाहिए।
“नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः” आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। भगवान यहां बताते हैं कि आत्मा अविनाशी है और यह न तो किसी शस्त्र से काटा जा सकता है और न ही आग उसे जला सकती है। हमें आत्मा के अमरत्व का ज्ञान होना चाहिए |
समत्वं योग उच्यते : किसी भी परिस्थिति में समभाव रखना चाहिए यहां गीता में कहा गया है कि हमें सभी जीवों में समानता का आदर्श रखना चाहिए और सभी के प्रति सम्मान करना चाहिए। सफलता और असफलता की आसक्ति को त्याग कर तुम दृढ़ता से अपने कर्तव्य का पालन करो। यही समभाव योग कहलाता है।
“यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।” यहां भगवान श्रीकृष्ण को योगेश्वर और अर्जुन को धनुर्धर कहा गया है। हमें ईश्वर में श्रद्धा रखनी चाहिए और उसके बताये मार्ग पर चलना चाहिए ।
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'जो हुआ अच्छा हुआ, जो हो रहा है अच्छा हो रहा और जो होगा वो भी अच्छा होगा' ये श्रीमद्भगवद्गीता के किस अध्याय व श्लोक में लिखा है?
श्रीमद्भगवतगीता में ऐसा कहीं नहीं लिखा है।
Apne kaam par dhayan de jayda dimag mat laga hindu dharma main