लक्ष्मण की मृत्यु रामायण में एक घटना का वर्णन आता है की श्रीराम को न चाहते हुए भी जान से प्यारे अपने भाई लक्ष्मण को मृत्युदंड देना पड़ता है। आइये जानते है आखिर क्यों भगवान राम को लक्ष्मण को मृत्युदंड देना पड़ा?
धारावाहिक : | रामायण रामानंद सागर कृत |
संगीत : | रवींद्र जैन |
स्वर : | सतीश डेरा और देविका पंडित |
निर्देशक | रामानंद सागर |
शैली | पौराणिक कथा |
मूल प्रसारण | २५ जनवरी १९८७ – ३१ जुलाई १९८ |
मूल चैनल : | दूरदर्शन |
छायांकन : | अजित नाइक |
निर्माता : | रामानंद सागर, आनंद सागर, मोती सागर |
संपादक : | सुभाष सहगल |
मूल भाषा : | हिंदी (Hindi) |
ये घटना उस वक़्त की है जब श्री राम लंका विजय करके अयोध्या लौट आते है और अयोध्या के राजा बन जाते है।
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क्यों श्री राम ने लक्ष्मण को मृत्युदंड दिया | Lakshman death story Ramayan
एक दिन यम देवता कोई महत्तवपूर्ण चर्चा करने श्री राम के पास आते है। चर्चा प्रारम्भ करने से पूर्व वो भगवान राम से कहते है की आप जो भी प्रतिज्ञा करते हो उसे पूर्ण करते हो। मैं भी आपसे एक वचन मांगता हूं कि जब तक मेरे और आपके बीच वार्तालाप चले तो हमारे बीच कोई नहीं आएगा और जो आएगा, उसको आपको मृत्युदंड देना पड़ेगा। भगवान राम, यम को वचन दे देते है।
राम, लक्ष्मण को यह कहते हुए द्वारपाल नियुक्त कर देते है की जब तक उनकी और यम की बात हो रही है वो किसी को भी अंदर न आने दे, अन्यथा उसे उन्हें मृत्युदंड देना पड़ेगा। लक्ष्मण भाई की आज्ञा मानकर द्वारपाल बनकर खड़े हो जाते है। लक्ष्मण को द्वारपाल बने कुछ ही समय बीतता है वहां पर ऋषि दुर्वासा का आगमन होता है।
जब दुर्वासा ने लक्ष्मण से अपने आगमन के बारे में राम को जानकारी देने के लिये कहा तो लक्ष्मण ने विनम्रता के साथ मना कर दिया। इस पर दुर्वासा क्रोधित हो गये तथा उन्होने सम्पूर्ण अयोध्या को श्राप देने की बात कही। लक्ष्मण समझ गए कि ये एक विकट स्थिति है जिसमें या तो उन्हे रामाज्ञा का उल्लंघन करना होगा या फिर सम्पूर्ण नगर को ऋषि के श्राप की अग्नि में झोेंकना होगा।
ऋषि दुर्वासा का श्राप जिसके कारन लक्ष्मण को मृत्युदंड मिला
लक्ष्मण ने शीघ्र ही यह निश्चय कर लिया कि उनको स्वयं का बलिदान देना होगा ताकि वो नगर वासियों को ऋषि के श्राप से बचा सकें। उन्होने भीतर जाकर ऋषि दुर्वासा के आगमन की सूचना दी। राम भगवान ने शीघ्रता से यमराज के साथ अपनी वार्तालाप समाप्त कर ली
परंतु अब श्री राम दुविधा में पड़ गए क्योंकि उन्हें अपने वचन के अनुसार लक्ष्मण को मृत्यु दंड देना पड़ेगा । वो समझ नहीं पा रहे थे की वो अपने भाई को मृत्युदंड कैसे दे, लेकिन उन्होंने यम को वचन दिया था जिसे निभाना भी था।
इस दुविधा की स्तिथि में श्रीराम ने अपने गुरु का स्मरण किया और कोई रास्ता दिखाने को कहा। गुरदेव ने कहा की अपने किसी प्रिय का त्याग, उसकी मृत्यु के समान ही है। अतः तुम अपने वचन का पालन करने के लिए लक्ष्मण का त्याग कर दो।
लेकिन जैसे ही लक्ष्मण ने यह सुना तो उन्होंने राम से कहा की आप भूल कर भी मेरा त्याग नहीं करना, आप से दूर रहने से तो यह अच्छा है की मैं आपके वचन की पालना करते हुए मृत्यु को गले लगा लूँ। ऐसा कहकर लक्ष्मण ने जल समाधी ले ली।
अंतिम बात :
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