राधाकृष्ण | कृष्ण वाणी
किसी भी वस्तु को बाँध सकने के लिए किसी बंधन का,
किसी रस्सी का होना आवश्यक है। परन्तु इस रस्सी को
बाँध सकने की शक्ति कौन देता है?
वो धागे जिनसे जुट कर ये रस्सी बनी है।
अब बताइये,
प्रेम को किस रस्सी से स्वयं तक बांधेंगे आप?
प्रेम बनता है विश्वास से और विश्वास की डोरी के धागे
सत्य के धागों से बुने जाते है।
अब प्रश्न ये उठता है कि सत्य क्या है?
वो जो हमने देखा, वो जो हमने सोचा?
नहीं,
हमारा सत्य वो है जिस पर हमने विश्वास कर लिया
और विश्वास वो जिसे हमने सत्य समझ लिया।
वास्तविकता में सत्य और विश्वास एक ही सिक्के के दो छोर है।
जहां सत्य नहीं वहां विश्वास की नींव नहीं और जहां विश्वास नहीं
वहां सत्य अपना धरातल खो देता है।
तो यदि किसी का सत्य जानना है तो विश्वास कीजिये,
प्रेम का धरातल बन जायेगा और मन प्रसन्न होकर बोलेगा
राधे-राधे!