राधाकृष्ण | कृष्ण वाणी – 11

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राधाकृष्ण | कृष्ण वाणी

प्रेम, प्रेम विधाता की सबसे सुन्दर कृति है, 

परन्तु हर कृति हो संभालना पड़ता है।

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अब इसी मूर्ति को देख लीजिये, जब कलाकार ने इसे रचा 
तब ये बहुत सुन्दर थी परन्तु इसके पश्चात इसे संभाला नहीं गया, 
इसके स्वामी ने इसकी देखभाल का कर्तव्य ठीक से नहीं निभाया 
और अब…. 
अब ये मूर्ति असुन्दर लगने लगी है।

इसी प्रकार केवल कह देने से प्रेम, प्रेम नहीं हो जाता। 

इसके लिए आपको अपने कर्तव्यों को पूर्ण करना होगा। 
तो देश की सुरक्षा, परिवार और संबंधियों की सुरक्षा, 
संतान को संस्कार, जीवन साथी का आभास, ये कर्तव्य 
जब तक नहीं निभाओगे, प्रेम से दूर होते जाओगे।

यदि प्रेम का अमृत पाना है तो कर्तव्य की 

अंजलि बनानी होगी और मन से कहना होगा 
राधे-राधे!