राधाकृष्ण | कृष्ण वाणी
मन बड़ी ही विचित्र कृति है ये मन,
शरीर के किस अंग में बसता है कोई नहीं जानता।
किन्तु सम्पूर्ण शरीर इस मन की इच्छा
साकार करने के लिए प्रयास करता रहता है।
अब यदि मन कुछ खाने का करे तो व्यक्ति उसकी
इच्छा साकार करने का माध्यम ढूंढता रहता है।
अब यदि मन किसी को शत्रु समझ ले तो व्यक्ति
उसे नष्ट करने का हर सम्भव प्रयास करता है।
अब यदि मन किसी से प्रेम करे तो उसकी प्रसन्नता
के लिए हर सीमा लांघने के लिए सज्ज रहता है।
परन्तु जीवन सुखद हो इसके लिए ये आवश्यक है
कि मन खाली रहे, इस बांसुरी की भांति। भीतर कुछ भी नहीं,
ना राग है, ना द्वेष, तब भी तार छेड़ने पर स्वर निकलता है।
इसी प्रकार मन को भी भावनाओं से मुक्त रखना आवश्यक है।
स्मरण रखिये,
मन में कुछ भर कर जियोगे तो मन भर के जी नहीं पाओगे।
राधे-राधे!