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राधाकृष्ण | कृष्ण वाणी – 68
राधाकृष्ण | कृष्ण वाणी
आज मैं आपसे तीन प्रश्न पूछूंगा। तो पहला प्रश्न – ऐसा कौन है जिस पर लगातार प्रहार करने के पश्चात भी वो...
राधाकृष्ण | कृष्ण वाणी – 67
राधाकृष्ण | कृष्ण वाणीसबसे अच्छा युद्ध वो जो कभी लड़ा ही ना जाये अर्थात “समझौता”, “संधि” हर आवश्यक परिस्थिति में शुभ होता है।अपने से...
राधाकृष्ण | कृष्ण वाणी – 66
राधाकृष्ण | कृष्ण वाणीगिरने में कोई आपत्ति नहीं है, बस गिरो तो उस बूँद की भांति जो इस संसार को नया जीवन देती...
राधाकृष्ण | कृष्ण वाणी – 65
राधाकृष्ण | कृष्ण वाणीमन, मनुष्य, मान इन तीनों का प्रारम्भ मन से ही होता है, है ना? किन्तु आज हम बात करेंगे “मान” के...
राधाकृष्ण | कृष्ण वाणी – 64
राधाकृष्ण | कृष्ण वाणीमनुष्य सदा सोचता है “फल” के विषय में कि मैं जो करने जा रहा हूँ उसका फल क्या होगा,उसका परिणाम क्या...
राधाकृष्ण | कृष्ण वाणी – 63
राधाकृष्ण | कृष्ण वाणीजबसे जीव अस्तित्व में आये है तबसे एक और शब्द अस्तित्व में आया है “संघर्ष” जन्म लेते ही व्यक्ति को जीवन...
राधाकृष्ण | कृष्ण वाणी – 62
राधाकृष्ण | कृष्ण वाणी
दीपक जलाने का कार्य कितना सुखमय होता है, प्रकाश की ये लौ मानो भीतर जाकर मन में उल्लास भर देती है।...
राधाकृष्ण | कृष्ण वाणी – 60
राधाकृष्ण | कृष्ण वाणी
“स्वप्न” और “लक्ष्य” कितने समान लगते है। इन दोनों की व्यक्ति कल्पना करता है।
इन दोनों को व्यक्ति पाना चाहता है और...
राधाकृष्ण | कृष्ण वाणी – 59
राधाकृष्ण | कृष्ण वाणीजीवन में कुछ कर दिखाना है, आकाश की वो सीमा छूनी है जिसे छूने के विषय में आप कभी सोच भी...
राधाकृष्ण | कृष्ण वाणी – 58
राधाकृष्ण | कृष्ण वाणीमनुष्य की एक विशेष प्रवृति होती है वो कभी स्वयं से संतुष्ट नहीं रहता, कभी स्वयं से प्रसन्न नहीं रहता, जो...
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