यदि आप सम्पूर्ण श्री लक्ष्मी चालीसा हिंदी में (Laxmi Chalisa in hindi) पढ़ना चाहते है तो आप यहाँ पढ़ सकते हैं | लक्ष्मी चालीसा को शांत मन के साथ अपने आप को श्री लक्ष्मी जी के चरणों में समर्पित करते हुए पढ़ने से निश्चित ही धन धान्य, कीर्ति में बढ़ोतरी होती है |
श्री लक्ष्मी चालीसा की रचना पूजनीय रामदास जी ने की थी। रामदास जी द्वारा रचित श्री लक्ष्मी चालीसा में कुल चालीस छंद हैं | मान्यता है कि प्रत्येक शुक्रवार को देवी लक्ष्मी की पूजा और मंत्र का जाप करने से व्यक्ति के घर में कभी धन का अभाव नहीं रहता है
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श्री लक्ष्मी चालीसा हिंदी में अर्थ सहित – Shri Laxmi Chalisa with Meaning
॥दोहा॥
मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास।
मनोकामना सिद्ध करि, परुवहु मेरी आस॥
अर्थ : हे मां लक्ष्मी दया करके मेरे हृद्य में वास करो हे मां मेरी मनोकामनाओं को सिद्ध कर मेरी आशाओं को पूर्ण करो।
॥सोरठा॥
यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।
सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदम्बिका॥
अर्थ : हे मां मेरी यही अरदास है, मैं हाथ जोड़ कर बस यही प्रार्थना कर रहा हूं हर प्रकार से आप मेरे यहां निवास करें। हे जननी, हे मां जगदम्बिका आपकी जय हो।
॥चौपाई॥
सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही। ज्ञान, बुद्धि, विद्या दो मोही॥
तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥
जय जय जगत जननि जगदम्बा। सबकी तुम ही हो अवलम्बा॥
तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥
जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥
अर्थ : हे सागर पुत्री मैं आपका ही स्मरण करता/करती हूं, मुझे ज्ञान, बुद्धि और विद्या का दान दो। आपके समान उपकारी दूसरा कोई नहीं है। हर विधि से हमारी आस पूरी हों, हे जगत जननी जगदम्बा आपकी जय हो, आप ही सबको सहारा देने वाली हो, सबकी सहायक हो। आप ही घट-घट में वास करती हैं, ये हमारी आपसे खास विनती है। हे संसार को जन्म देने वाली सागर पुत्री आप गरीबों का कल्याण करती हैं।
विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥
कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥
ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥
अर्थ : हे मां महारानी हम हर रोज आपकी विनती करते हैं, हे जगत जननी भवानी, सब पर अपनी कृपा करो। आपकी स्तुति हम किस प्रकार करें। हे मां हमारे अपराधों को भुलाकर हमारी सुध लें। मुझ पर अपनी कृपा दृष्टि रखते हुए हे जग जननी, मेरी विनती सुन लीजिये। आप ज्ञान, बुद्धि व सुख प्रदान करने वाली हैं, आपकी जय हो, हे मां हमारे संकटों का हरण करो।
क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥
चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥
जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥
तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥
अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥
अर्थ : जब भगवान विष्णु ने दुध के सागर में मंथन करवाया तो उसमें से चौदह रत्न प्राप्त हुए। हे सुखरासी, उन्हीं चौदह रत्नों में से एक आप भी थी जिन्होंने भगवान विष्णु की दासी बन उनकी सेवा की। जब भी भगवान विष्णु ने जहां भी जन्म लिया अर्थात जब भी भगवान विष्णु ने अवतार लिया आपने भी रुप बदलकर उनकी सेवा की।
स्वयं भगवान विष्णु ने मानव रुप में जब अयोध्या में जन्म लिया तब आप भी जनकपुरी में प्रगट हुई और सेवा कर उनके दिल के करीब रही, अंतर्यामी भगवान विष्णु ने आपको अपनाया, पूरा विश्व जानता है कि आप ही तीनों लोकों की स्वामी हैं।
तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वाञ्छित फल पाई॥
तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥
और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥
ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥
अर्थ : आपके समान और कोई दूसरी शक्ति नहीं आ सकती। आपकी महिमा का कितना ही बखान करें लेकिन वह कहने में नहीं आ सकता अर्थात आपकी महिमा अकथ है। जो भी मन, वचन और कर्म से आपका सेवक है, उसके मन की हर इच्छा पूरी होती है।
छल, कपट और चतुराई को तज कर विविध प्रकार से मन लगाकर आपकी पूजा करनी चाहिए। इसके अलावा मैं और क्या कहूं, जो भी इस पाठ को मन लगाकर करता है, उसे कोई कष्ट नहीं मिलता व मनवांछित फल प्राप्त होता है।
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बन्धन हारिणी॥
जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥
ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥
पुत्रहीन अरु सम्पति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥
विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥
पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
अर्थ : हे दुखों का निवारण करने वाली मां आपकी जय हो, तीनों प्रकार के तापों सहित सारी भव बाधाओं से मुक्ति दिलाती हो अर्थात आप तमाम बंधनों से मुक्त कर मोक्ष प्रदान करती हो। जो भी चालीसा को पढ़ता है, पढ़ाता है या फिर ध्यान लगाकर सुनता और सुनाता है, उसे किसी तरह का रोग नहीं सताता, उसे पुत्र आदि धन संपत्ति भी प्राप्त होती है।
पुत्र एवं संपत्ति हीन हों अथवा अंधा, बहरा, कोढि या फिर बहुत ही गरीब ही क्यों न हो यदि वह ब्राह्मण को बुलाकर आपका पाठ करवाता है और दिल में किसी भी प्रकार की शंका नहीं रखता अर्थात पूरे विश्वास के साथ पाठ करवाता है। चालीस दिनों तक पाठ करवाए तो हे मां लक्ष्मी आप उस पर अपनी दया बरसाती हैं।
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥
बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥
बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥
अर्थ : चालीस दिनों तक आपका पाठ करवाने वाला सुख-समृद्धि व बहुत सी संपत्ती प्राप्त करता है। उसे किसी चीज की कमी महसूस नहीं होती। जो बारह मास आपकी पूजा करता है, उसके समान धन्य और दूसरा कोई भी नहीं है। जो मन ही मन हर रोज आपका पाठ करता है, उसके समान भी संसार में कोई नहीं है। हे मां मैं आपकी क्या बड़ाई करुं, आप अपने भक्तों की परीक्षा भी अच्छे से लेती हैं।
करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा॥
जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥
अर्थ : जो भी पूर्ण विश्वास कर नियम से आपके व्रत का पालन करता है, उसके हृद्य में प्रेम उपजता है व उसके सारे कार्य सफल होते हैं। हे मां लक्ष्मी, हे मां भवानी, आपकी जय हो। आप गुणों की खान हैं और सबमें निवास करती हैं। आपका तेज इस संसार में बहुत शक्तिशाली है, आपके समान दयालु और कोई नहीं है। हे मां, मुझ अनाथ की भी अब सुध ले लीजिये। मेरे संकट को काट कर मुझे आपकी भक्ति का वरदान दें।
भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥
रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्धि मोहि नहिं अधिकाई॥
अर्थ : हे मां अगर कोई भूल चूक हमसे हुई हो तो हमें क्षमा कर दें, अपने दर्शन देकर भक्तों को भी एक बार निहार लो मां। आपके भक्त आपके दर्शनों के बिना बेचैन हैं। आपके रहते हुए भारी कष्ट सह रहे हैं। हे मां आप तो सब जानती हैं कि मुझे ज्ञान नहीं हैं, मेरे पास बुद्धि नहीं अर्थात मैं अज्ञानी हूं आप सर्वज्ञ हैं।
अब अपना चतुर्भुज रुप धारण कर मेरे कष्ट का निवारण करो मां। मैं और किस प्रकार से आपकी प्रशंसा करुं इसका ज्ञान व बुद्धि मेरे अधिकार में नहीं है अर्थात आपकी प्रशंसा करना वश की बात नहीं है।
॥दोहा॥
त्राहि त्राहि दुःख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास।
जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर।
मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥
अर्थ : हे दुखों का हरण करने वाली मां दुख ही दुख हैं, आप सब पापों हरण करो, हे शत्रुओं का नाश करने वाली मां लक्ष्मी आपकी जय हो, जय हो। रामदास प्रतिदिन हाथ जोड़कर आपका ध्यान धरते हुए आपसे प्रार्थना करता है। हे मां लक्ष्मी अपने दास पर दया की नजर रखो।
Shree Ram Chalisa | श्री राम चालीसा |
Shree Shiv Chalisa | शिव चालीसा |
Shree Ganesh Chalisa | श्री गणेश चालीसा |
Shree Hanuman Chalisa | हनुमान चालीसा |
Shree Krishna Chalisa | श्रीकृष्ण चालीसा |
Shree Saraswati Chalisa | श्री सरस्वती चालीसा |
Laxmi Chalisa in English
॥ Doha ॥
Maatu Lakshmi Kari Kripa, Hridaya Mein Vaas।
Manokamna Siddha Kari, Paruvahu Meri Aas॥
॥ Sortha ॥
Yahi Mor Ardas,Hath Jod Vinati karun।
Sab Vidhi Karau Suvas, Jai Janani Jagadambika।
॥ Chaupai ॥
Sindhu suta Main Sumirun Tohi
Gyan Budhi Vidya do mohi || 1 ||
Tum saman nahin koi upkaari
Sab Vidhi purvahh aas hamari || 2 ||
Jai Jai Jai Janani Jagdamba
Sabki tum he ho avlamba || 3 ||
Tum ho sab ghat ghat ki vasi
Vinti yahi hamari khasi || 4 ||
Jag janani jai sindhu kumari
Deenan ki tum ho hitkari || 5 ||
Binvo nit tum maharani
Kripa karo jag-janani bhawani || 6 ||
Kehi vidhi astuti karoon tihari
Sudhi leejay apradh bisari || 7 ||
Kripa drishti chitvo mum ori
Jag janani vinti sun mori || 8 ||
Gyan budhi sab sukh kee data
Sankat haro hamari mata || 9 ||
Ksheer sindhu jab Vishnu mathayo
Chaudah ratna sindhu may payo || 10 ||
Chaudah rattan me tum sukh rasi
Seva kiyo prabhu ban dasi || 11 ||
Jo jo janam prabhu jahan leenha
Roop badal tahan seva keena || 12 ||
Svayam Vishnu jab nar tanu dhara
Leenyo avadhpuri avatara || 13 ||
Tab tum prakat janakpur manhee
Seva kiyo hriday pulkahi || 14 ||
Apnayo tohi antaryami
Vishwa vidhit tribhuvan ke swami || 15 ||
Tum sam prabal shakti nahin aani
Kahnlau mahima kaho bakhani || 16 ||
Man kram vachan karay sevakayee
Man ichhit vanchit phal payee || 17||
Taji chal kapat aur chaturayee
Pujahee Vividh bhaanti man lai || 18 ||
Aur hal mai kahoum bjhuyayee
Jo yeh path karay mun layee || 19 ||
Ta ko koee kasht na hoyee
Mun icchit vanchhit phal payee || 20 ||
Trahi trahi jai dhukh nivarini
Taapbhav bandhan haranee || 21 ||
Jo yah padhey aur padhavay
Dhyan laga kar suney sunavay || 22 ||
Tako koi rog na satavey
Puttarad dhan sampatti pavey || 23 ||
Puttarheen aru sampatiheena
Andha vadhr koree ati deena || 24 ||
Vippra bolayay key path kara
Shanka dil mein kabhi na lavai || 25 ||
Path karavay din chalisa
Tapar kripa karein gaurisha || 26 ||
Sukh sampati bahut see pavay
Kami nahi kaho kea aaway || 27 ||
Barah maas karai jo puja
Taihi sam dhanya aur nahi duja || 28 ||
Pratidin path karaai man mahi
Un sum koi jag main kahun nahi || 29 ||
Bahu vidhii kya main karoon barayee
Lay pariksha dhyan lagayee || 30 ||
Kari vishvas karaye vrat ma
Hoya siddh upjai ur prema || 31 ||
Jai jai jai lakshmi bhawani
Sab main vyapit ho gunkhani || 32 ||
Tumharo tej prabal jag mahi
Tum sam kohoo dayal kohu nahee || 33 ||
Mohi anath ki sudhi ab leejai
Sankat kaati bhakti mohi deejay || 34 ||
Bhool chook kari kshama hamari
Darshan deejay dasha nihari || 35 ||
Bin darshan vyakul adhikari
Tumhi achchat dukh sahtay bhari || 36 ||
Nahin mohihn gyan buddhi hai man mein
Sab janat ho apney man main || 37 ||
Roop chaturbhuj karkey dharan
Kasht moor ab karhu nivaran || 38 ||
Kehi prakar main karoo barayee
Gyan buddhi mohi nahi adhikaji || 39 ||
Ramdas ab kahayi pukari
Karo duur tum vipati hamari || 40 ||
॥ Doha ॥
Trahi Trahi Dukh Harini, Haro Vegi Sab Tras।
Jayati Jayati Jai Lakshmi, Karo Shatru Ko Naash॥
Ramdas Dhari Dhyan Nit,Vinay Karat Kar Jor।
Maatu Lakshmi Daas Par, Karahu Daya Ki Kor॥
Iti Shri Lakshmi Chalisa sampoornam ||
लक्ष्मी चालीसा से होने वाले लाभ – Benefits of Maa Laxmi Chalisa
लक्ष्मी चालीसा धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी को समर्पित एक भक्तिपूर्ण प्रार्थना है। लक्ष्मी चालीसा का जाप या पाठ करने से विभिन्न लाभ मिलते हैं, जिनमें शामिल हैं:
- धन और समृद्धि का आशीर्वाद: देवी लक्ष्मी धन और भौतिक प्रचुरता से जुड़ी हैं। पूर्ण भक्ति के साथ लक्ष्मी चालीसा का जाप करने से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है
- आर्थिक बाधाएं दूर होती है: लक्ष्मी चालीसा का नियमित पाठ करने से आर्थिक बाधाएं और परेशानियां दूर होती हैं।
- आध्यात्मिक विकास और आंतरिक पूर्ति: भौतिक समृद्धि के साथ-साथ, लक्ष्मी चालीसा को आध्यात्मिक विकास और आंतरिक पूर्ति लाने वाला भी माना जाता है। यह कृतज्ञता, संतोष और परमात्मा के साथ गहरे संबंध को विकसित करने में मदद करता है, जिससे समग्र मानव कल्याण होता है।
- सुरक्षा और स्थिरता: देवी लक्ष्मी को घर की रक्षक और निर्वाहक भी माना जाता है। श्री लक्ष्मी चालीसा का जाप करने से घर और परिवार की सुरक्षा, स्थिरता, सद्भाव और शांति सुनिश्चित करने के लिए उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है: श्री लक्ष्मी चालीसा का पाठ वातावरण को शुद्ध करने और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने के लिए माना जाता है। यह एक सकारात्मक और शुभ वातावरण बनाता है
- उदारता और दान को बढ़ावा देना: श्री लक्ष्मी चालीसा का जाप भक्तों को दूसरों के प्रति उदारता, दया और करुणा के गुणों को विकसित करने के लिए प्रेरित करता है। यह दान और निःस्वार्थ सेवा के अभ्यास को प्रोत्साहित करता है।
- भक्ति संबंध: श्री लक्ष्मी चालीसा देवी लक्ष्मी के साथ एक गहरा भक्ति संबंध विकसित करने के साधन के रूप में कार्य करती है। यह प्रेम, श्रद्धा और परमात्मा के प्रति समर्पण को बढ़ावा देता है, जिससे किसी की आध्यात्मिक यात्रा और आध्यात्मिक विकास में वृद्धि होती है।
लक्ष्मी चालीसा पढ़ने की सही विधि क्या हैं ?
लक्ष्मी चालीसा को पढ़ने की सही विधि निम्नलिखित रूप से होती है:
- प्रारंभ मंत्र: सबसे पहले, आपको चालीसा की पुस्तक, पूजा सामग्री, और श्री लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र के सामने बैठना चाहिए। उसके बाद, आरंभिक मंत्र का उच्चारण करें जो लक्ष्मी माता की कृपा और आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करता है।
- पठन: इसके बाद शुरू करें चालीसा का पठन। ध्यान दें कि आपको शुद्ध मन और शुद्ध शरीर के साथ पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ चालीसा का पाठ करना चाहिए। आप इसे संस्कृत भाषा में या अपनी पसंद के किसी अन्य भाषा में पढ़ सकते हैं।
- समाप्ति: चालीसा के पठन के बाद, आपको समाप्ति मंत्र का जाप करना चाहिए, जो लक्ष्मी माता से आशीर्वाद और कृपा की प्रार्थना करता है।
सुनिश्चित करें कि आप प्रतिदिन इसे एक स्थिर समय पर पढ़ते हैं और इसे श्रद्धापूर्वक करते हैं।
निष्कर्ष :
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