Krishna Updesh | Swayam Vichar Kijiye | स्वयं विचार कीजिए

824

Krishna Updesh : श्रीकृष्ण कहते हैं कि मनुष्य को स्वयं को ईश्वर में लीन कर देना चाहिए. ईश्वर के सिवाय मनुष्य का कोई नहीं होता है. इसके साथ ही यह मान कर कर्म करना चाहिए कि वह भी किसी का नहीं है. भोग से मिलने वाला सुख क्षणिक होता है जबकि त्याग में स्थायी आनंद मिलता है.

स्वयं विचार करे ! Swayam Vichar Kijiye

जब किसी व्यक्ति को किसी घटना में अन्याय का अनुभव होता हे
तो वो घटना उसके अंतर को जगजोड़ा देती हे
समस्त जगत उसे अपना शत्रु प्रतीत होता हे
अन्याय करने वाली घटना जितनी बड़ी  होती हे
मनुष्य का ह्रदय भी उतना ही अधिक विरोध करता हे
उस घटना के उत्तर में वो न्याय मांगता हे
और ये योग्य भी हे वास्तव में समाज में
किसी भी प्रकार का अन्याय  व्यक्ति की
आस्था और विश्वाश का नाश हे
किन्तु ये न्याय क्या हे ?
 न्याय का अर्थ क्या हे ?

अन्याय करने वाले को अपने कार्य पर पश्वाताप हो
और अन्याय भुगत ने वाले के मनमे  फिर से
विश्वाश जगे समाज के प्रति इतना ही अर्थ हे ना न्याय का
किन्तु जिसके ह्रदय में धर्म नहीं होता हे
वो न्याय को छोड़ कर वेर और प्रतिशोध को अपनाता हे
हिंसा के बदले कठिन हिंसा की भावना को लेके चलता हे
स्वयं भोगे हुए पीड़ा से कई अधिक पीड़ा देने का प्रयत्न करता हे
और इस स्थान पर चलते अन्याय को भोगतने वाला स्वयं
अन्याय करने लगता हे शिघ्र ही वो अपराधी बन जाता हे
अर्थात न्याय और प्रतिशोध के बिच बहौत कम अंतर होता हे
और इशी अंतर का नाम हे धर्म क्या ये सत्य नहीं

स्वयं विचार कीजिए !!

अंतिम बात :

दोस्तों कमेंट के माध्यम से यह बताएं कि Krishna Updesh” वाला यह आर्टिकल आपको कैसा लगा | हमने पूरी कोशिष की हे आपको सही जानकारी मिल सके| आप सभी से निवेदन हे की अगर आपको हमारी पोस्ट के माध्यम से सही जानकारी मिले तो अपने जीवन में आवशयक बदलाव जरूर करे फिर भी अगर कुछ क्षति दिखे तो हमारे लिए छोड़ दे और हमे कमेंट करके जरूर बताइए ताकि हम आवश्यक बदलाव कर सके | 

हमे उम्मीद हे की आपको स्वयं विचार करे ! वाला यह आर्टिक्ल पसंद आया होगा | आपका एक शेयर हमें आपके लिए नए आर्टिकल लाने के लिए प्रेरित करता है | ऐसी ही कहानी के बारेमे जानने के लिए हमारे साथ जुड़े रहे धन्यवाद ! 🙏