दोस्तों जीवन की परेशानी गीता की कुछ पंक्तियाँ पढ़ने से हमारी चिंता का निदान करती हे इस वीडियो में कुछ ऐसी ही पक्तियां हे जो हमारे जीवन में बदलाव ला सकती हे |
Bhagavad Gita Quotes by Krishna – भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहे अनमोल वचन
Table of Contents
1) धर्म का रक्षण करो धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा..अगर तुम धर्म को समाप्त करने का प्रयास करोगे तो धर्म तुम्हे समाप्त कर देगा..
2) प्रत्येक निर्णय से पूर्व स्वयं अपने ह्रदय से यह प्रश्न अवश्य पूछ लेना
क्या यह निर्णय स्वार्थ से जन्मा हे या धर्म से …? स्वयं विचार किजीये। ….
3) मनुष्य नहीं उसके कर्म अच्छे या बुरे होते हे और जेसे मनुष्य के कर्म होते हे
उसे वैसे ही फल की प्राप्ति होती हे
4) अच्छे कर्म करते रहो क्योकि अच्छे कर्म स्वयं को शक्ति देता हे और दुसरो को अच्छे कर्म करने की प्रेरणा देता हे !
5) सभी कर्म कार्य हे किन्तु सभी कार्य कर्म नहीं इसीलिए हर क्षण उचित कार्य करना अनिवार्य हे
6) कैसे वस्त्र पहनने से में अच्छा दिखुंगा यह तो हम हंमेशा सोचते हे किन्तु क्या यह विचार किया हे के कैसे अच्छे कर्म करू ताकि स्वयं भगवान् को ही में अच्छा लगु..??!!
7) तुम जितना सामर्थ्य हो उतना अधर्म करलो किन्तु यह अवश्य स्मरण रहे के जितना अधर्म तुम करोगे वही अधर्म कई गुना बढ़कर पुनः तुम्हे ही भुगतना होगा
8) चाहे आप जितने पवित्र शब्द पढ़ ले या बोल ले वो आपका क्या भला करेंगे ?
जब तक आप उनहे आचरण में नही लाते ! स्वयं विचार किजीये। ….
9) जीवन में कोई भी बाधा क्यों न हो अगर कोई भी व्यक्ति धैर्य
बरक़रार रखेंगा तो हर समस्या का समाधान उसे मिल जायेगा
10) जब कोई कार्य प्रेमभाव के साथ किया जाता हे तो उस कार्य मे तत्काल सफलता मिलती हे
11) जितने अंशो में आपका “में” पिघलेगा उतने अंशो में परमात्मा से निकटता होगी
12) ईश संसार में अगर कुछ पाने की चीज हे तो वह ईश्वर हे और कुछ जानने की चीज हे तो स्वयं को की ” में कौन हु ” अगर स्वयं को जान लिया तो हमारा जन्म सार्थक हो जायेगा
13) जो सभी इच्छाएं त्याग देता है और “मैं ” और “मेरा ” की लालसा और भावना से मुक्त हो जाता है उसे शांती प्राप्त होती है
14) परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षणमें तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, और दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो।मेरा-तेरा,छोटा बड़ा, अपना पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, और तुम सबके…
15) मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है. जैसा वो विश्वास करता है वैसा ही वह बन जाता है
16) सदैव संदेह करने वाले व्यक्ति के लिए प्रसन्नता ना इस लोक में है ना ही कहीं और.
17) क्रोध से भ्रम पैदा होता है. भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है. जब बुद्धि व्यग्र होती है
तब तर्क नष्ट हो जाता है.जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पतन हो जाता है.
18) जो व्यक्ति अपने कार्य में आनंद खोज लेते हैं तब वो व्यक्ति पूर्णता
को प्राप्त कर लेते हे
19) कर्म उसे नहीं बांधता जिसने कामनाओं का त्याग कर, इच्छा रहित, ममता रहित तथा अहंकार रहित होकर विचरण करता है.
20) नर्क के तीन द्वार हैं: वासना, क्रोध और लालच. इसलिए इन तीनों का
त्याग करना चाहिए
21) मन अशांत है और उसे नियंत्रित करना कठिन है, लेकिन अभ्यास और वैराग्य
से वश में किया जा सकता है.
22) इन्द्रियां शरीर से श्रेष्ठ कही जाती हैं, इन्द्रियों से परे मन है और मन से परे बुद्धि है और आत्मा बुद्धि से भी अत्यंत श्रेष्ठ है
23) मैं सभी प्राणियों को समान रूप से देखता हूँ; ना कोई मुझे कम प्रिय है ना अधिक. लेकिन जो धर्म के मार्ग पे चलते हे वो मेरे भीतर रहते हैं और मैं उनके जीवन में आता हूँ.
24) जन्म लेने वाले के लिए मृत्यु उतनी ही निश्चित है जितना कि मृत होने वाले के लिए जन्म लेना.इसलिए जो अपरिहार्य है उस पर शोक मत करो.
25) फल की अभिलाषा छोड़ कर कर्म करने वाला व्यक्ति ही अपने जीवन को सफल बनाता हैं । क्योकि ….
फल की आशा से कामना प्रगट होती हे और कामना का तो स्वभाव हे असंतोष रेहना। असंतोष से क्रोध उत्पन्न होता हे और क्रोध से मोह जन्मता हे मोह से व्यक्ति आचार और व्यवहार का ज्ञान ही भूल जाता हे ज्ञान के जाने से बुद्धि चली जाती हे और बुद्धि नष्ट होने से मनुष्य का पूर्णतः पतन हो जाता हे
26) जो कार्य में निष्क्रियता और निष्क्रियता में कार्य देखता है वह एक बुद्धिमान व्यक्ति है.
27) उससे मत डरो जो वास्तविक नहीं है, ना कभी था ना कभी होगा जो सत्य है, वो हमेशा था और उसे कभी नष्ट नहीं किया जा सकता
28) दुःख से जिसका मन परेशान नहीं होता, सुख की जिसको आकांक्षा नहीं होती तथा जिसके मन में राग, भय और क्रोध नष्ट हो गए हैं, ऐसा मुनि आत्मज्ञानी कहलाता है।
29) अपने ह्रदय से अज्ञान के संदेह को आत्म-ज्ञान की तलवार से काटकर अलग कर दो.
30) जो व्यक्ति आध्यात्मिक जागरूकता के शिखर तक पहुँच चुके हैं, उनका मार्ग है निःस्वार्थ कर्म. जो भगवान् के साथ संयोजित हो चुके हैं उनका मार्ग है स्थिरता और शांति.
31) कर्म मुझे बांधता नहीं, क्योंकि मुझे कर्म के प्रतिफल की मुझे कोई इच्छा नहीं.
32) अहिंसा ही परम् धर्म हे और उसके साथ सत्य, क्रोध न करना,त्याग,मन की शांति,निंदा न करना दया भाव,सुख के प्रति आकर्षित न होना ,बिना कारण कोई
कार्य न करना ,तेज, क्षमा,धैर्य, शरीर की शुद्धता, धर्म का द्रोह न करना तथा
अहंकार न करना इतने गुणों को सत्व गुणी संपत्ति या दैवी संपति कहा जाता हे