ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं (Om Purnamadah Purnamidam) मंत्र बृहदारण्यक उपनिषद के पांचवें अध्याय से है और ईशावास्योपनिषद का शांति पाठ है | परब्रह्म पुरुषोत्तम परमात्मा सभी प्रकार से सदा सर्वदा परिपूर्ण है। ॐ त्रिविध ताप की शांति हो | इस मंत्र का शान्तिपाठ के रूप में जादा प्रयोग होता है ।
Purnamadah Purnamidam Stotra Detail:
स्तोत्र का नाम | ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं |
संबंधित | परमात्मा |
भाषा | संस्कृत और हिंदी |
सूत्र | बृहदारण्यक उपनिषद और ईशावास्योपनिषद |
Table of Contents
ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं मंत्र हिंदी अर्थ सहित
ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् , पूर्ण मुदच्यते,
पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्ण मेवा वशिष्यते।
ॐ शांति: शांति: शांतिः ईश उपनिषद
मन्त्र का अर्थ: वह जो (परब्रह्म) दिखाई नहीं देता है, वह अनंत और पूर्ण है। क्योंकि पूर्ण से पूर्ण की ही उत्पत्ति होती है। यह दृश्यमान जगत भी अनंत है। उस अनंत से विश्व बहिर्गत हुआ। यह अनंत विश्व उस अनंत से बहिर्गत होने पर भी अनंत ही रह गया।
ओम्! वह अनंत है, और यह (ब्रह्मांड) अनंत है। अनंत से अनंत की प्राप्ति होती है। (तब) अनंत (ब्रह्मांड) की अनंतता लेते हुए, वह अनंत के रूप में अकेला रहता है।
ॐ वह पूर्ण था/है सृष्टी उत्पत्ती के पहले भी, उत्पत्ती के बाद भी यह पूर्ण है , मतलब एक पूर्ण से दुसरा एक पूर्ण पैदा हुआ वह भी पूर्ण ही है । पूर्ण से पूर्ण निकलने के बाद भी जो बचा हुआ है वह भी पूर्ण ही है ! ओम्! शांति! शांति! शांति!
यह कैसा आश्चर्यजनक गणित है ! हमे पढाया जाता है की शून्य से शून्य का जमा, घटा, भागाकार आदी सब का शून्य फल मिलता है ।
0+0 = 0 ; 0-0=0 ; 0÷0 = 0
यहाँ पूर्ण से पूर्ण निकाल देने पर भी पूर्ण बचना – थोड़ा अजीब लग सकता है। लेकिन यहाँ पूर्ण से तात्पर्य
1)अनंत या अथाह से है या
2) गुणात्मक तात्पर्य है।
Vedasara Shiva Stotram Lyrics | वेदसारशिवस्तोत्रम् – पशूनां पतिं पापनाशं |
Shiv Bilvashtakam Lyrics | बिल्वाष्टकम् – त्रिदलं त्रिगुणाकारं |
Mrityunjaya Stotram in Sanskrit | महामृत्युंजय स्तोत्र हिंदी में |
Karpur Gauram Mantra | कर्पूर गौरं करुणावतारं मंत्र हिंदी |
Shiva Panchakshar Stotra Lyrics | शिव पंचाक्षर स्तोत्र अर्थ सहित |
Mahamrityunjaya Mantra | महामृत्युंजय मंत्र |
Aum Chanting | ॐ का अर्थ और महत्व |
Karpur Gauram Mantra | कर्पूर गौरं करुणावतारं मंत्र हिंदी |
ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं – Om Purnamadah Purnamidam
इसे विस्तृत में जानने के लिए हम एक कहानी को माध्यम बनाते हे
जंगल में एक योगी नित्यानंद रहते थे। योगी नित्यानंद काफी वृद्ध हो चले थे। वहां उस समय कुछ ही लोग रजते थे। जंगल होने के की वजह से वहा शेर,चित्ता और हाथी वहा आ जाते थे। वहा के योगाभ्यासी शिष्य प्रति दिन गुरूजी के लिए फल लाया करते थे।
एक दिन वह शिष्य गुरूजी के फल तोड़ने के लिए वृक्ष पर चढ़ने लगे वहा गुरूजी नित्यानंद भी मौजूद थे | उस पेड़ पर एक बड़ा ही मधुमख्खी का छत्ता था और पेड़ हिलने से मधुमख्खी उड़ने लगी | शिष्य ने चिल्ला कर गुरूजी को पेड़ से दूर जाने का आग्रह करते हुए कहा की दूर चले जाइये नहीं तो मखियाँ काटेंगी। लेकिन दूर जाना तो दूर रहा वह योगी (नित्यानंद) मख्खी के पास जा कर कुछ बोलने लगे। शिष्य जब फल तोड़ कर पास आया, देखा की मख्खियाँ शांत हो कर दूर चली गयी थी।
शिष्य ने पूछा की गुरूजी आप मधुमख्खियों से कैसे बच गएँ। कौन सा मन्त्र आपने पढ़ा। मुझे भी बताईए। गुरूजी बोलें की पेड़ पर चढो और चढते रहो फिर मंत्रोंपदेश करूँगा। तब शिष्य पेढ पर चढने लगा। गुरूजी ने मंत्रोपदेश देना प्रारंभ करने लगे | की अंतरात्मा से में योग क्रिया कर रहा हूँ
” हे मधुमखियौं मैं तुम्हारा कोई अहित नहीं करूँगा। तूम भी मेरा अपकार नहीं करना।”
शिष्य ने कहा की यह तो मन्त्र नहीं है। गुरूजी ने कहा कि तुम निष्कपट यह बात मधुमख्खियों से धीरे से बोलो। हृदय की भाषा वे समझतीं है। केवल दिल खोल कर वार्तालाप करो।
शिष्य ने ऐसा ही किया जैसे गुरूजी ने कहा आश्चर्य की बात हे की वो मधुमखियों ने उसकी भाषा को समझते हुए कोई अपकार नहीं किया और शांत हो गई
उनके तथा हमारे अंदर एक ही आत्मा का निवास है, इसे जानना चाहिए। भलाई की बात सोचना ही महा मन्त्र है। नकारात्मक सोच हम न सोचें, तो सदैव हमारा मन्त्र फलीभूत होगा।
इसी प्रकार के मंत्रोच्चारण से उपासना करने का प्रयत्न हर एक व्यक्ति को करना चाहिए।
पुराणों में हिंदू इतिहास की शुरुआत सृष्टि उत्पत्ति से ही मानी जाती है, ऐसा कहना की यहाँ से शुरुआत हुई यह शायद उचित न होगा फिर भी वेद-पुराणों में मनु (प्रथम मानव) से और भगवान कृष्ण की पीढ़ी तक का इसमें उल्लेख मिलता है।
किसी भी धर्म के मूल तत्त्व उस धर्म को मानने वालों के विचार, मान्यताएँ, आचार तथा संसार एवं लोगों के प्रति उनके दृष्टिकोण को ढालते हैं। हिंदू धर्म की बुनियादी पाँच बातें तो है ही
- वंदना,
- वेदपाठ,
- व्रत,
- तीर्थ, और
- दान
लेकिन इसके अलावा निम्न सिद्धांत को भी जानना चाहिए |
Read More : Devi shuktam – Tantroktam Devisuktam
1. ब्रह्म ही सत्य है: ईश्वर एक ही है और वही प्रार्थनीय तथा पूजनीय है। वही सृष्टि भी। शिव, राम, कृष्ण आदि सभी एक ही ईश्वर हे | हजारों देवी-देवता उसी एक के प्रति नमन हैं। वेद और उपनिषद एक ही परमतत्व को मानते हैं।
2. वेद ही धर्म ग्रंथ है : पुराण, रामायण और महाभारत धर्मग्रंथ नहीं इतिहास ग्रंथ हैं। ऋषियों द्वारा पवित्र ग्रंथों, चार वेद एवं अन्य वैदिक साहित्य की दिव्यता एवं अचूकता पर जो श्रद्धा रखता है वही सनातन धर्म की सुदृढ़ नींव को बनाए रखता है।
3. सृष्टि उत्पत्ति व प्रलय : परमेश्वर सबसे बढ़कर है। हिन्दू धर्म की मान्यता है कि सृष्टि उत्पत्ति, पालन एवं प्रलय की अनंत प्रक्रिया पर चलती है। गीता में कहा गया है कि जब ब्रह्मा का दिन उदय होता है, तब सब कुछ अदृश्य से दृश्यमान हो जाता है और जैसे ही रात होने लगती है, सब कुछ वापस आकर अदृश्य में लीन हो जाता है। वह सृष्टि पंच कोष तथा आठ तत्वों से मिलकर बनी है।
4. कर्मवान बनो : कर्म से ही भाग्य का निर्माण होता है। कर्म एवं कार्य-कारण के सिद्धांत अनुसार प्रत्येक व्यक्ति अपने भविष्य के लिए पूर्ण रूप से स्वयं ही उत्तरदायी है। प्रत्येक व्यक्ति अपने मन, वचन एवं कर्म की क्रिया से अपनी नियति स्वयं तय करता है। इसी से प्रारब्ध बनता है। कर्म का विवेचन वेद और गीता में दिया गया है।
5. पुनर्जन्म : सनातन हिन्दू धर्म पुनर्जन्म में विश्वास रखता है। जन्म एवं मृत्यु के निरंतर पुनरावर्तन की प्रक्रिया से गुजरती हुई आत्मा अपने पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करती है। आत्मा के मोक्ष प्राप्त करने से ही यह चक्र समाप्त होता है।
6. प्रकति की प्रार्थना : वेद प्राकृतिक तत्वों की प्रार्थना किए जाने के रहस्य को बताते हैं। ये नदी, पहाड़, समुद्र, बादल, अग्नि, जल, वायु, आकाश और हरे-भरे प्यारे वृक्ष हमारी कामनाओं की पूर्ति करने वाले हैं अत: इनके प्रति कृतज्ञता के भाव हमारे जीवन को समृद्ध कर हमें सद्गति प्रदान करते हैं। इनकी पूजा नहीं प्रार्थना की जाती है। यह ईश्वर और हमारे बीच सेतु का कार्य करते हैं। यही दुख मिटाकर सुख का सृजन करते हैं।
7. गुरु का महत्व : सनातन धर्म में सद्गुरु के समक्ष वेद शिक्षा-दिक्षा लेने का महत्व है। किसी भी सनातनी के लिए एक गुरु (आध्यात्मिक शिक्षक) का मार्ग दर्शन आवश्यक है। गुरु की शरण में गए बिना अध्यात्म व जीवन के मार्ग पर आगे बढ़ना असंभव है। लेकिन वेद यह भी कहते हैं कि अपना मार्ग स्वयं चुनों। जो हिम्मतवर है वही अकेले चलने की ताकत रखते हैं।
8.सर्वधर्म समभाव : ‘आनो भद्रा कृत्वा यान्तु विश्वतः’- ऋग्वेद के इस मंत्र का अर्थ है कि किसी भी सदविचार को अपनी तरफ किसी भी दिशा से आने दें। ये विचार सनातन धर्म एवं धर्मनिष्ठ साधक के सच्चे व्यवहार को दर्शाते हैं। चाहे वे विचार किसी भी व्यक्ति, समाज, धर्म या सम्प्रदाय से हो। यही सर्वधर्म समभाव: है। हिंदू धर्म का प्रत्येक साधक या आमजन सभी धर्मों के सारे साधु एवं संतों को समान आदर देता है।
9.यम-नियम : यम नियम का पालन करना प्रत्येक सनातनी का कर्तव्य है। यम अर्थात
- अहिंसा,
- सत्य,
- अस्तेय,
- ब्रह्मचर्य और
- अपरिग्रह।
नियम अर्थात
- शौच,
- संतोष,
- तप,
- स्वाध्याय और
- ईश्वर प्राणिधान।
10. मोक्ष का मार्ग : मोक्ष की धारणा और इसे प्राप्त करने का पूरा विज्ञान विकसित किया गया है। यह सनातन धर्म की महत्वपूर्ण देन में से एक है। मोक्ष में रुचि न भी हो तो भी मोक्ष ज्ञान प्राप्त करना अर्थात इस धारणा के बारे में जानना प्रमुख कर्तव्य है।
12 संध्यावंदन : संधि काल में ही संध्या वंदन की जाती है। वैसे संधि पाँच या आठ वक्त (समय) की मानी गई है, लेकिन सूर्य उदय और अस्त अर्थात दो वक्त की संधि महत्वपूर्ण है। इस समय मंदिर या एकांत में शौच, आचमन, प्राणायामादि कर गायत्री छंद से निराकार ईश्वर की प्रार्थना की जाती है।
13 श्राद्ध-तर्पण : पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं तथा तृप्त करने की क्रिया और देवताओं, ऋषियों या पितरों को तंडुल या तिल मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को तर्पण कहते हैं। तर्पण करना ही पिंडदान करना है। श्राद्ध पक्ष का सनातन हिंदू धर्म में बहुत ही महत्व माना गया है।
14.दान का महत्व : दान से इंद्रिय भोगों के प्रति आसक्ति छूटती है। मन की ग्रथियाँ खुलती है जिससे मृत्युकाल में लाभ मिलता है। मृत्यु आए इससे पूर्व सारी गाँठे खोलना जरूरी है, जो जीवन की आपाधापी के चलते बंध गई है। दान सबसे सरल और उत्तम उपाय है। वेद और पुराणों में दान के महत्व का वर्णन किया गया है।
15.संक्रांति : भारत के प्रत्येक समाज या प्रांत के अलग-अलग त्योहार, उत्सव, पर्व, परंपरा और रीतिरिवाज हो चले हैं। यह लंबे काल और वंश परम्परा का परिणाम ही है कि वेदों को छोड़कर हिंदू अब स्थानीय स्तर के त्योहार और विश्वासों को ज्यादा मानने लगा है। सभी में वह अपने मन से नियमों को चलाता है। कुछ समाजों ने माँस और मदिरा के सेवन हेतु उत्सवों का निर्माण कर लिया है। रात्रि के सभी कर्मकांड निषेध माने गए हैं।
उन त्योहार, पर्व या उत्सवों को मनाने का महत्व अधिक है जिनकी उत्पत्ति स्थानीय परम्परा, व्यक्ति विशेष या संस्कृति से न होकर जिनका उल्लेख वैदिक धर्मग्रंथों, धर्मसूत्रों और आचार संहिता में मिलता है। ऐसे कुछ पर्व हैं और इनके मनाने के अपने नियम भी हैं। इन पर्वों में सूर्य-चंद्र की संक्रांतियों और कुम्भ का अधिक महत्व है। सूर्य संक्रांति में मकर सक्रांति का महत्व ही अधिक माना गया है।
16.यज्ञ कर्म : वेदानुसार यज्ञ पाँच प्रकार के होते हैं-(1) ब्रह्मयज्ञ (2)देवयज्ञ (3)पितृयज्ञ (4)वैश्वदेव यज्ञ (5)अतिथि यज्ञ। उक्त पाँच यज्ञों को पुराणों और अन्य ग्रंथों में विस्तार दिया गया है। वेदज्ञ सार को पकड़ते हैं विस्तार को नहीं।
17.वेद पाठ : कहा जाता है कि वेदों को अध्ययन करना और उसकी बातों की किसी जिज्ञासु के समक्ष चर्चा करना पुण्य का कार्य है, लेकिन किसी बहसकर्ता या भ्रमित व्यक्ति के समक्ष वेद वचनों को कहना निषेध माना जाता है।
सर्वे भवन्तु सुखिनः। सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु। मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥
ॐ शांति शांति शांति
ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं के लाभ – Benefits of Om Purnamadah Purnamidam
मंत्र “ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं” ईशा उपनिषद नामक प्राचीन हिंदू शास्त्र का एक श्लोक है। इसका गहरा आध्यात्मिक और दार्शनिक महत्व है। यहां “ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं” मंत्र का जप या चिंतन करने के कुछ संभावित लाभ दिए गए हैं:
- संपूर्णता: ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं मंत्र दिव्य पूर्णता और संपूर्णता की बात करता है जो अस्तित्व में सब कुछ व्याप्त है। यह हमें याद दिलाता है कि परम सत्य पूर्ण और अनंत है। ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं मंत्र का ध्यान करके हम अपने भीतर पूर्णता की भावना पैदा कर सकते हैं और ब्रह्मांड की अंतर्निहित पूर्णता को पहचान सकते हैं।
- द्वैत का अतिक्रमण: ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं मंत्र द्वैत के अतिक्रमण और अलगाव के भ्रम को दर्शाता है। यह दावा करता है कि परमात्मा स्रोत और अभिव्यक्ति दोनों है, और यह कि सब कुछ आपस में जुड़ा हुआ है। ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं मंत्र का जप या चिंतन हमें अच्छे और बुरे, स्वयं और अन्य की सीमित धारणाओं से परे जाने में मदद कर सकता है।
- आंतरिक शांति और सद्भाव: मंत्र शांति और सद्भाव का गहरा संदेश देता है। ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं मंत्र का ध्यान करके हम आंतरिक शांति और संतोष की भावना का अनुभव कर सकते हैं। यह हमें आसक्तियों, इच्छाओं और अहं से प्रेरित गतिविधियों को छोड़ने की याद दिलाता है, जिससे आंतरिक संतुलन और समभाव की स्थिति पैदा होती है।
- आध्यात्मिक जागृति: ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं मंत्र हमारे भीतर और सभी प्राणियों में दिव्य उपस्थिति की याद दिलाता है। ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं जप या उस पर चिंतन करके, हम अपनी आध्यात्मिक चेतना को जगा सकते हैं, परमात्मा के साथ अपने संबंध को गहरा कर सकते हैं और ब्रह्मांड के साथ एकता की भावना का अनुभव कर सकते हैं।
- मानसिक स्पष्टता और फोकस: ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं मंत्र की पुनरावृत्ति मन को शांत करने और एकाग्रता बढ़ाने में मदद कर सकती है। ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं ध्यान के लिए एक केंद्र बिंदु प्रदान करता है, जिससे मन केंद्रित हो जाता है। इस मंत्र के जप या चिंतन के नियमित अभ्यास से मानसिक स्पष्टता, ध्यान और उपस्थित रहने की क्षमता में सुधार हो सकता है।
- कृतज्ञता: ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं मंत्र पर चिंतन करके, हम अपने जीवन में आशीर्वाद और प्रचुरता के लिए कृतज्ञता की भावना पैदा करते हैं। यह हमारे दृष्टिकोण को एक सकारात्मक और आभारी दृष्टिकोण में बदलने में सहाय करता हे
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि “ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं” मंत्र का जप या चिंतन करने के लाभ प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग-अलग हो सकते हैं।
ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं मंत्र एक शक्तिशाली मंत्र है जिसका उपयोग शांति, सद्भाव और कल्याण को बढ़ावा देने के लिए किया जा सकता है। मंत्र एक अनुस्मारक है कि ब्रह्मांड परमात्मा की अभिव्यक्ति है, और हम सभी एक दूसरे से और परमात्मा से जुड़े हुए हैं।
अंतिम बात :
दोस्तों कमेंट के माध्यम से यह बताएं कि “ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं” वाला यह आर्टिकल आपको कैसा लगा | आप सभी से निवेदन हे की अगर आपको हमारी पोस्ट के माध्यम से सही जानकारी मिले तो अपने जीवन में आवशयक बदलाव जरूर करे फिर भी अगर कुछ क्षति दिखे तो हमारे लिए छोड़ दे और हमे कमेंट करके जरूर बताइए ताकि हम आवश्यक बदलाव कर सके |
हमे उम्मीद हे की भक्तों यह Om Purnamadah Purnamidam आर्टिक्ल पसंद आया होगा | आपका एक शेयर हमें आपके लिए नए आर्टिकल लाने के लिए प्रेरित करता है | ऐसी ही कहानी के बारेमे जानने के लिए हमारे साथ जुड़े रहे धन्यवाद ! 🙏
बहुत ही सुंदर जानकारी
अति उत्तम कथा के माध्यम से प्रस्तुति। "भलाई की बात सोचना ही महामन्त्र है। नकारात्मक सोच हम न सोचें, तो सदैव हमारा मन्त्र फलीभूत होगा।
इसी प्रकार के मंत्रोच्चारण से उपासना करने का प्रयत्न हर एक व्यक्ति को करना चाहिए।
So thought full…
बहुत अच्छा विवेचन.
ओम पूर्णमद: पूर्णमिदं का जप कितनी बार करना है.
ओम पुर्णमद: पूर्णमदं का जप कितनी बार करना है.
हृदय से प्रसंचित हूं।धन्याद
अति सुंदर जानकारी देने के लिए आभार !