दोस्तों इस कहानी में हम आपको भगवान् शिव और अर्जुन के बीच हुए युद्ध के बारेमे बताएँगे | जुए में सबकुछ हारकर जब पांडव वन में चले गए वंहा प्रतिशोध की आंग में जल रहे थे तब भगवान् श्री कृष्ण ने उनकी हिमत बढ़ाई
कहानी : | भगवान शिव और अर्जुन के बीच युद्ध |
शैली : | आध्यात्मिक कहानी |
सूत्र : | पुराण |
मूल भाषा : | हिंदी |
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भगवान शिव और अर्जुन के बीच युद्ध
भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुनसे कहा तुम्हारे पास अभी ऐसे अस्त्र शास्त्र नहीं हे जो पितामह भीष्म द्रोणाचार्य कर्ण आदि धनुर्धरो सामना कर सके इसीलिए तुम्हे भगवान् शिव की तपस्या करनी चाहिए और अस्त्र प्राप्त करना चाहिए
अर्जुन ने भगवान् श्री कृष्ण की आज्ञा का पालन करते हुए घोर तपस्या आरम्भ कर दी | अर्जुन भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए तपस्या कर रहे थे, एकदिन एक मुंड नामक दैत्य अर्जुन को मारने के लिए शूकर (सुअर) का रूप धारण कर वहां पहुंचा। उस दैत्य को साधारण बाण से नहीं मारा जा सकता था।
यह देखकर भगवान शिव किरात वेष धारण कर वहां पहुंच गए। अर्जुन ने शूकर पर अपने बाण से प्रहार किया, उसी समय भगवान शंकर ने भी किरात वेष धारण कर उसी शूकर पर बाण चलाया।
शिव की माया के कारण अर्जुन उन्हें पहचान न पाए और शूकर का वध उसके बाण से हुआ है, यह कहने लगे। इस पर दोनों में विवाद हो गया | दोनों के मध्य विवाद बढ़ता गया फिर इस विवाद ने युद्ध का रूप धारण कर लिया।
अर्जुन और भगवान शिव के बीच हुआ युद्ध
फिर ऐसे ही आरम्भ हुआ भगवान् शिव और अर्जुन के बीच युद्ध भगवान् शिव के अस्त्र अर्जुन के अस्त्रको निस्तेज करने लगे फिर दोनों के बीच द्वंद्व युद्ध हुआ भगवान् शिव ने अर्जुन को कई बार परास्त किया फिर भी अर्जुन ने हार नहीं मानी आखिर तक भगवान् शिव से युद्ध करते रहे अंत में किरात बने भगवान् शिव के प्रहार से अर्जुन मूर्छित हो गये
तब भगवान् शिवने अर्जुन से पूछा क्या अभ भी तुम मुझसे युद्ध करना चाहते हो इसपर अर्जुनने कहा युद्ध अभी समाप्त नहीं हुआ हे परन्तु फिर युद्ध करने से पहले में शिवजी की पूजा करना चाहता हु भगवान्शिव ने कहा मुझे स्वीकार हे
किरात बने भगवान् शिव की शक्ति देखकर अर्जुन को अत्यन्त आश्चर्य हुआ अर्जुन ने भील को मारने की शक्ति प्राप्त करने के लिये शिव लिंग बनाकर पूजा आरंभ की अर्जुन कहने लगे हे देवाधि देव महादेव मुझे इस किरात को युद्ध में परास्त करने के शक्ति प्रदान कीजिये
किन्तु जैसे ही अर्जुन ने शिवलिंग पर पुष्प अर्पित किये अर्जुन ने देखा कि वह पुष्प शिव मूर्ति पर पड़ने के स्थान पर भील के चरणों में चले गए | उसी समय भगवान् श्रीकृष्ण वंहा प्रकट हुए भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन को भगवान् शिव के भील रूप से अवगत कराया
इससे अर्जुन समझ गये कि भगवान शंकर ही भील का रूप धारण करके वहाँ उपस्थित हुये हैं। अर्जुन भगवान् शिव के के चरणों में गिर पड़े।और कहा भगवान् में आप ही के दर्शन पाने के लिए तपस्या कर रहा था | मेरे अपराध के लिए आप मुझे क्षमा कीजिए
अर्जुन को पाशुपतास्त्र की प्राप्ति – Pashupatastra
भगवान शिव ने अपना असली रूप धारण कर लिया फिर अर्जुन से कहा- “हे अर्जुन! तुम्हे क्षमा मांगने की आवश्यकता नहीं हे तुमने कोई अपराध कोई पाप नहीं किया हे मैं तुम्हारी तपस्या एवं शौर्य से अति प्रसन्न हूँ
तुम्हारे जैसा महावीर धनुर्धारी त्रिलोक में दूसरा कोई नहीं हे हे पार्थ साक्षात् देवता भी यदि तुमसे युद्ध करने की भूल करेंगे तो उनके भाग्य में पराजय ही आएगी अंत में विजय तुम्हे ही प्राप्त होगी
हे पार्थ इसके अतिरिक्त तुम्हे और क्या चाहिए अर्जुन ने कहा हे पाशुपति नाथ कृपया मुझे आप अपना शिष्य बना लीजिए मुझे पाशुपतास्त्र की शिक्षा एवं दीक्षा दीजिये
भगवान् शिव ने कहा हे अर्जुन में तुम्हे पाशुपतास्त्र प्रदान कर रहा हु किन्तु इसका उपयोग सोच समझकर करना अत्यंत आवश्यकता होने पर ही इसका आह्वान करना यह अत्यंत विनाशकारी अस्त्र हे इस अस्त्र के प्रयोग से सम्पूर्ण जगत का विनाश भी हो सकता हे
ऐसा कहकर भगवान् शिव ने अर्जुन को पाशुपतास्त्र प्रदान किया फिर वहां से अन्तर्ध्यान हो गये।
निष्कर्ष
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