Home Krishna Updesh राधाकृष्ण | कृष्ण वाणी – 20

राधाकृष्ण | कृष्ण वाणी – 20

राधाकृष्ण | कृष्ण वाणी

हम में ऐसा कोई नहीं होगा जिसने वृक्षों को नहीं देखा, वृक्षों पर इन पक्षियों का ना देखा, इनके घोंसलों को ना देखा, इन पक्षियों को अपने छोटे-छोटे बच्चों को भोजन कराते ना देखा, संसार का सबसे ममत्त्व वाला दृश्य होता है।

krishnavani radhakrishna

चिड़िया दूर से अपनी चोंच में दाना भर कर लाती है, स्वयं भोजन करने में असक्षम संतान की चोंच में डालती है, स्वयं भूखी रहती है, निस्वार्थ, निश्छलता और जब संतान के पंख निकल आते है वो उसे उड़ना सिखाती है और उसके पश्चात उसे स्वतंत्र कर देती है अपना जीवन जीने के लिए, इस आकाश में उड़ान भरने के लिए और हम मनुष्य क्या करते है जिस संतान को हम पंछी की भांति पालते है, उसके पंख निकलते ही हम उसे बाँध देते है, ये सोच के कि कहीं वो दूर उड़ कर ना चली जाये।

ऐसा नहीं है कि इस स्थिति में माता-पिता को संतान से प्रेम नहीं है, अवश्य है। किन्तु इसमें प्रेम पर मोह भारी पड़ जाता है। जो स्वयं अपने और संतान के बीच में बाधा बन जाता है हम ये भूल जाते है कि हम केवल जन्मदाता है, भाग्यविधाता नहीं।

तो जब प्रेम में मोह आ जाये तो वो प्रेम नहीं स्वार्थ बन जाता है। इसलिए प्रेम को पास रखिये और मोह को दूर, क्योंकि जिससे प्रेम करते है उसका विकास नहीं रोका करते।

राधे-राधे!

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