खुश रहने का रहस्य : दोस्तों बहुत समय पहले की बात है, एक व्यक्ति था जो बहुत ही दुखी रहता था और दुखो की वजह से अपने आप को कोष्टा रहता था, एक दिन उस व्यक्ति ने सुना की, पास के गांव में जो संत महात्मा रहते हे वह लोगो की समस्याओं और परेशानियों का समाधान करते हे, उस व्यक्ति ने सोचा की, मुझे भी अपनी समस्या लेकर संत के पास जाना चाइये, ताकि मेरी दुविधा भी दूर हो जाये |
कहानी : | खुश रहने का रहस्य – सुखदुःखे समे कृत्वा |
शैली : | आध्यात्मिक कहानी |
सूत्र : | पुराण |
मूल भाषा : | हिंदी |
कहानी से सीख : | सुख-दुःख को समान समझना |
Table of Contents
खुश रहने का रहस्य | Secret of Happiness Spiritual story (सुखदुःखे समे कृत्वा)
फिर एक दिन वह व्यक्ति उस संत महात्मा के पास पोहच ही गए, और उसने कहा, महाराज में अपने दुखो की वजह से तंग आ गया हु ,दुखों को लेकर कभी कभी तो आत्महत्या करने का भी विचार आता हे, और कहा की संसार में खुश रहने का रहस्य क्या है ?
संत ने उस व्यक्ति की पूरी बात सुनी, और कहा कि, तुम मेरे साथ चलो, मैं तुम्हे खुश रहने का रहस्य बताता हूँ | उसके बाद संत और वह व्यक्ति, जंगल की और चल दिए | रास्ते में चलते हुए संत ने एक बड़ा सा पत्थर उठाया, और उस व्यक्ति को देते हुए कहा कि ,इसे पकड़ो और चलो | उस व्यक्ति ने वह पत्थर लिया और संत के साथ साथ चलने लगा |
कुछ देर बाद, उस व्यक्ति के हाथ में दर्द होने लगा, लेकिन वह चुप रहा और चलता रहा | जब चलते चलते बहुत समय बीत गया, और उस व्यक्ति से दर्द सहा नहीं गया, तो उसने संत महात्मा से कहा कि, मुझे बहुत दर्द हो रहा है | तब संत महात्मा ने कहा कि, इस पत्थर को नीचे रख दो | पत्थर को नीचे रखते ही, उस व्यक्ति को राहत मिली |
अब संत ने उससे पूछा – जब तुमने पत्थर को अपने हाथ में उठा रखा था, तब तुम्हे कैसा लग रहा था !
उस व्यक्ति ने कहा – शुरू में दर्द कम था, तो मेरा ध्यान आप पर ज्यादा था पत्थर पर कम, लेकिन जैसे जैसे दर्द बढ़ता गया, मेरा ध्यान आप पर से कम होकर पत्थर पर ज्यादा होने लगा, और एक समय मेरा पूरा ध्यान पत्थर पर आ गया, और मैं इससे अलग कुछ नहीं सोच पा रहा था |
तब संत ने उससे दोबारा पूछा – जब तुमने पत्थर को नीचे रख दिया, तब तुम्हे कैसा लगा ?
इस पर उस व्यक्ति ने कहा – पत्थर नीचे रखते ही ,मुझे बहुत राहत मिली और ख़ुशी भी महसूस हुई |
तब महात्मा ने कहा कि, यही है खुश रहने का रहस्य ! इस पर वह व्यक्ति बोला – मैं कुछ समझा नहीं महाराज
तब संत ने कहा – जिस तरह इस पत्थर को थोड़ी देर हाथ में उठाने पर थोड़ा सा दर्द होता है , थोड़ी और ज्यादा देर उठाने पर थोड़ा और ज्यादा दर्द होता है, और, अगर हम इसे बहुत देर तक उठाये रखेंगे, तो दर्द बढ़ता ही जायेगा | उसी प्रकार, हम दुखों को जितना ज्यादा समय तक उठाये रखेंगे, हम उतने ही दुखी और निराश रहेंगे |
यह हम पर निर्भर करता है कि हमे दुखों को थोड़ी देर उठाये रखना हैं या फिर ज़िंदगी भर उठाये रखना हैं !
सुखदुःखे समे कृत्वा – Bhagwad Geeta Saar
इसलिए अगर तुम खुश रहना चाहते हो, तो अपने दुःख रुपी पत्थर को जल्द से जल्द नीचे रखना सीख लो ,और अगर संभव हो तो उसे उठाओ ही नहीं |
दोस्तों इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है, कि यदि हमने अपने जीवन में दुःख रुपी पत्थर को उठा रखा है, तो शुरू शुरू में हमारा ध्यान अपने लक्ष्यों पे ज्यादा तथा दुखो पर कम होगा | लेकिन, अगर हमने अपने दुःख रुपी पत्थर को लम्बे समय से उठा रखा है, तो हमारा पूरा ध्यान अपने लक्ष्यों से हटकर हमारे दुखों पर आ जायेगा | और तब हम अपने दुखो में ही, डूबकर परेशान होते रहेंगे, और कभी भी खुश नहीं रह पाएंगे |
भगवान् श्रीकृष्ण ने भगवद गीता में बताया हे की – सुखदुःखे समे कृत्वा, यानि की अगर हम सुख-दुःख को समान समझकर जीवन युद्ध लड़ेंगे, तो हमारा जीवन भी सफल हो जायेगा
भगवद गीता श्लोक 2 . 38
सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ |
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि || ३८ ||
- सुख – सुख;
- दुःखे – तथा
- दुख में;
- समे – समभाव से;
- कृत्वा – करके;
- लाभ-अलाभौ – लाभ तथा हानि दोनों;
- जय-अजयौ – विजय तथा पराजय दोनों;
- ततः – तत्पश्चात्;
- युद्धाय – युद्ध करने के लिए;
- युज्यस्व – लगो (लड़ो);
- न – कभी नहीं;
- एवम् – इस तरह;
- पापम् – पाप;
- अवाप्स्यसि – प्राप्त करोगे |
भावार्थ
तुम सुख या दुख, हानि या लाभ, विजय या पराजय का विचार किये बिना युद्ध के लिए युद्ध करो | ऐसा करने पर तुम्हें कोई पाप नहीं लगेगा |
इसलिए दोस्तों अगर आपने भी कोई दुःख रुपी पत्थर उठा रखा है तो उसे जल्दी से जल्दी नीचे रखिये मतलब अपने दिलो दिमाग से निकाल फेंकिए और खुश रहिये |
सुख-दुःख को समान समझना – खुश कैसे रहे एक प्रेरक कहानी
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अंतिम बात :
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