स्वयं विचार कीजिए : भगवान श्री कृष्ण ईश्वर का पूर्ण अवतार हैं. उनके श्रीमुख से निकला कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन…. का वाक्य जीवन को कर्मशील बनाने का सन्देश देता है. इस पोस्ट में द्वारिकाधीश भगवान श्री कृष्ण के कुछ अनमोल वचनों को शेयर कर रहा हूँ. हो सके तो इस पर आप स्वयं विचार करें.
Producers : | Siddharth Kumar Tewary and Rahul Kumar Tewary |
TV Show : | Mahabharat (2013) |
Editor : | Paresh Shah |
Narrated by : | Saurabh Raj Jain |
Genres : | Mythology |
Original release : | 16 September 2013 – 16 August 2014 |
Production company : | Swastik Productions |
Directed by : | Siddharth Anand Kumar, Amarprith G, Mukesh Kumar Singh, Kamal Monga, Loknath Pandey |
Original network : | Star Plus |
स्वयं विचार कीजिए! | भगवान श्री कृष्ण के ब्रह्म वाक्य – Krishna Seekh
1. इच्छा, आशा, अपेक्षा और आकांक्षा यही सब मानव समाज के चालक होते हैं। या नहीं ? यदि कोई आप से पूछे कि आप कौन हैं? तो आपका उत्तर क्या होगा ? विचार कीजिए।
आप तुरन्त ही जान पाएंगे कि आपकी इच्छाएं ही आपके जीवन की व्याख्या हैं। कुछ पाने से मिली सफलता-कुछ न पाने से मिली निष्फलता ही आपका परिचय है। अधिकतर लोग ऐसे जीते हैं कि स्वंय भीतर से मरते रहते हैं। लेकिन अपनी इच्छाओं को नहीं मार पाते। इच्छायें उन्हें दौड़ाती हैं। जिस प्रकार शेर एक मृग (हिरन) को दौड़ाता है। परन्तु इन्ही इच्छाओं के गर्भ में ही ज्ञान का प्रकाश छुपा है…
कैसे ?
जब इच्छायें अपूर्ण रहती हैं और टूटती हैं। तब वहीं से ज्ञान की किरण प्रवेश करती है मनुष्य के ह्दय में
स्वयं विचार कीजिए!
2. पूर्वजो की इच्छा, आशा, महत्वकांक्षा, क्रोध, वैर, प्रतिशोध आने वाली पीठी की धरोहर बनते हैं।
माता-पिता अपनी सन्तानों को देना तो चाहते हैं समस्त संसार का सुख पर देते हैं अपनी पीठाओं की संपत्ति.
देना चाहते हैं अमृत पर साथ ही साथ विष का घडा भी भर देते हैं। आप विचार कीजिए कि आपने अपनी सन्तानों को क्या दिया आज तक? अवश्य प्रेम, ज्ञान, सम्पत्ति आदि दी है पर क्या साथ ही साथ उनके मन को मैल से भर देने वाले पूर्वतः नहीं दिये? अच्छे-बुरे की पूर्व निधारित व्याख्यायें नहीं की? व्यक्ति का व्यक्ति के साथ, समाजों का समाजों के साथ, विश्व का विश्व के साथ संघर्ष
क्या ये पूर्व ग्रह से निर्मित नहीं होते? हत्या, मृत्यु, रक्तपात क्या इन्हीं पूर्व ग्रह से नही जन्मते।
अर्थात माता-पिता जन्म के साथ अपनी सन्तानों को मृत्यु का दान भी दें देते हैं। प्रेम के प्रकाश के साथ-साथ घृणा का अन्धकार भी देते हैं। और अन्धकार मन का हो, ह्दय का हो या वास्तविक हो उससे केवल भय(डर) ही प्राप्त होता है।
स्वयं विचार कीजिए!
3. जीवन का हर क्षण निर्णय का क्षण होता है प्रत्येक पद पर दूसरे पद के विषय मे कोई निर्णय करना ही पडता है और निर्णय…
निर्णय अपना प्रभाव छोड जाता है। आज किये हुये निर्णय भविष्य में सुख और दुख निर्मित करते हैं न केवल अपने लिए अपितु अपने परिवार के लिए भी और आने वाली पीढ़ियों के लिए भी…
जब कोई परेशानी आती है तो मन व्याकुल हो जाता है अनिश्चय से भर जाता है। निर्णय का वो क्षण युध्द बन जाता है। और मन बन जाता है युध्द भूमि…
अधिकतर निर्णय हम परेशानी का उपाय करने के लिए नहीं केवल मन को शान्त करने के लिए लेते हैं। पर क्या कोई दौड़ते हुए भोजन कर सकता है? नहीं …
तो क्या युध्द से जूझता हुआ मन कोई योग्य निर्णय ले पायेगा?
वास्तव में शान्त मन से किया गया निर्णय अर्थात शान्त मन से कोई निर्णय करता है तो अपने लिए सुखद भविष्य बनाता है। किन्तु अपने मन को शान्त करने के लिए जब कोई व्यक्ति निर्णय करता है तो वो व्यक्ति भविष्य में अपने लिए कांटो भरा वृक्ष लगाता है।
स्वयं विचार कीजिए!
4. समय के आरम्भ से ही एक प्रश्न मनुष्य को सदैव पीडा(दु:ख)देता है कि वो अपने संबंधो में अधिक से अधिक सुख और कम से कम दुख किस प्रकार प्राप्त कर सकता है? क्या आपके सारे संबंधो ने आपको सम्पूर्ण सन्तोष दिया है? हमारा जीवन संबंधो पर आधारित है और हमारी सुरक्षा संबंधो पर आधारित है। इसी कारण हमारे सारे सुखो का कारण भी संबंध ही हैं। किन्तु फिर भी हमें संबंधो में दुख क्योँ प्राप्त होते हैं?
सदा ही संघर्ष भी संबंधो से क्योँ उत्पन्न हो जाते हैं?
जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के विचारों को स्वीकार नहीं करता अथवा उसके कार्यो को स्वीकार नहीं करता उसमे परिवर्तन करने का प्रयत्न करता है तो संघर्ष जन्म लेता है। अर्थात जितना अधिक अस्वीकार उतना ही अधिक संघर्ष और जितना ही अधिक स्वीकार उतना ही अधिक सुख। क्या यह वास्तविकता नहीं ? यदि मनुष्य स्वंय अपनी अपेकक्षाओं पर अंकुश रखे और अपने विचारो को परखे। किसी अन्य व्यक्ति मे परिवर्तन करने का प्रयत्न न करे। स्वंय अपने भीतर परिवर्तन करने का प्रयास करे। तो क्या संबंधो में सन्तोष प्राप्त करना इतना कठिन है?
अर्थात क्या स्वीकार ही सम्बंधो का वास्तविक आधार नहीं ?
स्वयं विचार कीजिए!
अंतिम बात :
दोस्तों कमेंट के माध्यम से यह बताएं कि “स्वयं विचार कीजिए – Swayam Vichar Kijiye” वाला यह आर्टिकल आपको कैसा लगा | हमने पूरी कोशिष की हे आपको सही जानकारी मिल सके| आप सभी से निवेदन हे की अगर आपको हमारी पोस्ट के माध्यम से सही जानकारी मिले तो अपने जीवन में आवशयक बदलाव जरूर करे फिर भी अगर कुछ क्षति दिखे तो हमारे लिए छोड़ दे और हमे कमेंट करके जरूर बताइए ताकि हम आवश्यक बदलाव कर सके |
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